विपत्ति मे यार
दाहिन सँ हेतौ कर्म बाम जहने
सुख सयल अलोपित हेतौ तहने
स्वार्थे वस सटल रहतौ दियाद
दुःख मे ओ उल्टे जोरतौ फसाद
नहि अकर मानव देखि कऽ अटारी
समय बनादैत छै ककरो भिखारी
राजा हरिश्चन्द्र सन महाज्ञानी
समय संग बिका गेलै तीनु प्राणी
ई जीवन सृष्टि के अनुपम फूल
समय संग चल, कर नहि कोनो भूल
सम्पत्ति के श्रृंगार विपत्ति मे यार
खोज निक मित्र बात पर कऽ विचार
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