चुलबुलिया
हमर भैया के सारि बड़ चुलबुलिया
ओे पल–पल मे बदले अपन हुलिया
नापे एहि घर ओहि घर डेगे सँ अंगना
खूब चूरी खनकाबे बजावे कंगना
दुनु ठोर बीचका कऽ देखावे ललिया
हवा मे उड़ावे छोट बॉवकट केश
लागे खुब दामी देखऽ मे ओकर भेष
पुछे घुमल छी कहियो प्रेमक गलिया
बात–बात मे चलावे ओ नयना सँ वाण
अपने नहि सम्भरब त छुटत परान
बनत ओ सुनरकी कि हमर जुलिया
मिथिलाक्षर | तिरहुता | मिथिलाक्षर लिपि | तिरहुता लिपि | मैथिली लिपि | विनीत ठाकुर
Monday, September 17, 2018
Tirhuta | Mithilakshar | Tirhuta Script | Mithilakshar Script | Mithilakshar Lipi | Tirhuta Lipi
हेयौ पंडित जी
हेयौ पंडित जी कनिक हमरो पर करियौ अहाँ विचार
पतरा मे निक जतरा गुणि कऽ बसादिय नीक संसार
हमरे वियाह मे किया यौ पंडित अवै छै एतेक अर्चन
घर सँ घुमि जाइए घरदेखी खा–खा कऽ तीन पर्सन
हमरा पर जँ ग्रह गोचरि होए त जल्दी करु निपटार
अहाँ एकबेर बाबुजी लग जाकऽ निक सँ करियौ ने चर्चा
कहियौन फरिछाकऽ हुनका जोड़ मे सक्षम छी हम खर्चा
किया वियाह मे लगाक लेकिन बनेने छथि राइक पहाड़
हमरा सँ छोट मारैय पिक्की सुना कऽ अपन विवाहक बात
मोन भजाइया खिन्न तहने भजाइ छी हम असगर कात
कहिया हमहु सासुर जाकऽ खेवै छप्पन व्यञ्जन परिकार
Tirhuta | Mithilakshar | Tirhuta Script | Mithilakshar Script | Mithilakshar Lipi | Tirhuta Lipi
हेयौ पंडित जी कनिक हमरो पर करियौ अहाँ विचार
पतरा मे निक जतरा गुणि कऽ बसादिय नीक संसार
हमरे वियाह मे किया यौ पंडित अवै छै एतेक अर्चन
घर सँ घुमि जाइए घरदेखी खा–खा कऽ तीन पर्सन
हमरा पर जँ ग्रह गोचरि होए त जल्दी करु निपटार
अहाँ एकबेर बाबुजी लग जाकऽ निक सँ करियौ ने चर्चा
कहियौन फरिछाकऽ हुनका जोड़ मे सक्षम छी हम खर्चा
किया वियाह मे लगाक लेकिन बनेने छथि राइक पहाड़
हमरा सँ छोट मारैय पिक्की सुना कऽ अपन विवाहक बात
मोन भजाइया खिन्न तहने भजाइ छी हम असगर कात
कहिया हमहु सासुर जाकऽ खेवै छप्पन व्यञ्जन परिकार
Tirhuta | Mithilakshar | Tirhuta Script | Mithilakshar Script | Mithilakshar Lipi | Tirhuta Lipi
Sunday, September 16, 2018
Mithilakshar | Tirhuta | Maithili Kavita | Maithili Geet | मैथिली कविता | गीत | मिथिलाक्षर | तिरहुता
मधुर वसन्त
उठु उठु उठु प्रियतम भेलै भोर
मधुर वसन्त मुस्कि मारे चहु ओर
प्रकृतिक आँचर मे भेटै जेना हीरा–मोती
तहिना सिनेह अहाँ के जीवनक ज्योति
शंख आ घण्टी बजवैत छथिन पुजारी
मन्दिर मे पूजा करैत छथिन नर–नारी
मन्द मुस्कान छोड़ैत सिहके वसात
कहैय गुलाब सजनी आउ लग पास
नवीन प्रभातक नवीन किरणियाँ
नव उर्जा लऽकऽ हँसैत आयल दुनियाँ
Mithilakshar | Tirhuta | Maithili Kavita | Maithili Geet | मैथिली कविता | गीत | मिथिलाक्षर | तिरहुता
उठु उठु उठु प्रियतम भेलै भोर
मधुर वसन्त मुस्कि मारे चहु ओर
प्रकृतिक आँचर मे भेटै जेना हीरा–मोती
तहिना सिनेह अहाँ के जीवनक ज्योति
शंख आ घण्टी बजवैत छथिन पुजारी
मन्दिर मे पूजा करैत छथिन नर–नारी
मन्द मुस्कान छोड़ैत सिहके वसात
कहैय गुलाब सजनी आउ लग पास
नवीन प्रभातक नवीन किरणियाँ
नव उर्जा लऽकऽ हँसैत आयल दुनियाँ
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