चुलबुलिया
हमर भैया के सारि बड़ चुलबुलिया
ओे पल–पल मे बदले अपन हुलिया
नापे एहि घर ओहि घर डेगे सँ अंगना
खूब चूरी खनकाबे बजावे कंगना
दुनु ठोर बीचका कऽ देखावे ललिया
हवा मे उड़ावे छोट बॉवकट केश
लागे खुब दामी देखऽ मे ओकर भेष
पुछे घुमल छी कहियो प्रेमक गलिया
बात–बात मे चलावे ओ नयना सँ वाण
अपने नहि सम्भरब त छुटत परान
बनत ओ सुनरकी कि हमर जुलिया
मिथिलाक्षर | तिरहुता | मिथिलाक्षर लिपि | तिरहुता लिपि | मैथिली लिपि | विनीत ठाकुर
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