Sunday, September 16, 2018

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मधुर वसन्त

उठु  उठु  उठु  प्रियतम   भेलै   भोर
मधुर वसन्त  मुस्कि  मारे  चहु   ओर

प्रकृतिक आँचर मे भेटै जेना हीरा–मोती
तहिना  सिनेह अहाँ के जीवनक ज्योति
शंख आ घण्टी  बजवैत  छथिन पुजारी
मन्दिर  मे  पूजा करैत छथिन नर–नारी

मन्द  मुस्कान  छोड़ैत  सिहके  वसात
कहैय  गुलाब  सजनी आउ  लग पास
नवीन  प्रभातक    नवीन   किरणियाँ
नव उर्जा लऽकऽ हँसैत आयल  दुनियाँ


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